एक समय की बात है। एक हाथी यमराज के यहां पहुंचा। यमराज उससे हंसी दिल्लगी करने लगे और उससे कहा -अरे! तेरी काया तो पहाड़ के समान है फिर भी तू एक छोटे से मनुष्य के वश में कैसे आ गया? हाथी ने कहा।-महाराज मनुष्य के वश में मैं तो क्या? आप भी हो सकते हैं,यहां तक कि भगवान भी। मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो भगवान को भी वश में कर सकता है और आप को भी वश में कर सकता है। तो फिर इसमें मेरी बात ही क्या है? यमराज बोले -अरे हाथी! हमारे यहां तो रोज हजारों मनुष्य आते हैं। हाथी ने कहा- हां महाराज लेकिन आपके यहां जो आते हैं वह मर कर आते हैं और मैं था जीवित मनुष्य के वश में। जीवित मनुष्य से कभी आपका सामना नहीं हुआ। यदि जीवित के साथ काम पड़ा तो सावित्री के साथ पडा था जिसके वश में आप हो गए थे। यह सुनकर यमराज ने अपने दूतों से कहा – एक जीवित मनुष्य को ले आओ। वे रात के समय ही निकल गए। गर्मी का महीना था। एक कायस्थ अपने घर की छत पर सो रहा था। यमराज के दूत उसे खाट सहित उठाकर आकाश मार्ग में उड़ चले। जब दूत उसकी खाट लेकर ऊपर की ओर उड़े तो उसकी आंखें खुल गई। स्वयं को आसमान में उड़ते हुए देखकर उसने सोचा कि यह क्या बला है आ गई है? फिर सोचा कि यदि हिलूंगा तो गिर जाऊंगा और मर जाऊंगा। इससे अच्छा तो देखता हूं कौन है? कपड़ों से मुंह निकालकर बाहर देखा तो यमराज के दूत उसे अपने साथ ले जा रहे थे। कायस्थ ने सोचा यमराज के दूत तो मरने के बाद अपने साथ ले जाते हैं। लेकिन मुझे जिंदा ही क्यों लेकर जा रहे हैं? फिर सोचा कि कहीं मैं स्वप्न तो नहीं देख रहा। तुरंत ही वह जागा और बोला। नहीं, नहीं। यह तो सच है। फिर सोचा कहीं मेरा भ्रम तो नहीं है। नहीं-नहीं भ्रम की तो कोई बात ही नहीं है। बात सोलह आने सच थी। कायस्थ ने दूतों से कहा-अरे मुझे कहां ले जा रहे हो? उन्होंने कहा यम के पास। उसने तुरंत ही कुछ विचार किया और उसे याद आया कि रात के समय काम करते हुए कागज और कलम उसके पास ही रखे रह गए थे।उसने तुरंत अपने पास रख के कागज और पेन निकालकर उस पर एक धर्मराज के नाम चिट्ठी लिख दी। धर्मराज से भगवान की यथा योग्य आज्ञा, इस नए व्यक्ति को मैं तुम्हारे पास भेज रहा हूं। सभी को इसके हुक्म के अनुसार काम करना है और नीचे श्रीहरि लिख दिया और उसे अपनी जेब में रख लिया। यमदूत उसी अवस्था में उसे लेकर पहुंचे। सभा में जाकर उसे नीचे उतार दिया। सुबह होने के बाद यमराज जी दरबार में आए। उन्हें देखकर कायस्थ ने चिट्ठी उनके हाथ में दे दी। दैव योग से जो श्रीहरि लिखा हुआ था और श्रीहरि के हस्ताक्षर आपस में मिल गए। कागज पढ़ते ही यमराज झट से खड़े हो गए। और हाथ जोड़कर बोले बैठिये महाराज और उसे अपने स्थान पर बिठा दिया और उसके कहे अनुसार कार्य शुरू हो गया। अब सामने अपराधी आने लगे। चित्रगुप्त पास में ही बैठे थे। चित्रगुप्त से यमराज ने एक अपराधी के विषय में पूछा। चित्रगुप्त जी- यह कौन है?
चित्रगुप्त ने कहा -यह बनिया है।
कायस्थ बोला- क्या करता है?
चित्रगुप्त ने कहा- इस व्यक्ति का तो व्यवहार ही झूठ,कपट,चोरी,बेईमानी और पाप का रहा है।
तब कायस्थ बोला- अरे लेना देना तो झूठा हो सकता है,लेकिन खाना पीना।
चित्रगुप्त बोले- महाराज,यह अच्छा खाते हैं और सोचते हैं की सरकार को पता ना चल जाए। इसलिए यह खाते तो अच्छे गेहूँ चावल है लेकिन कहते है कि हम तो मिलावट वाला अन्न खा रहे हैं। इस प्रकार यह झूठ बोलते हैं। इसीलिए यह झूठा खाते हैं।
तब कायस्थ ने पूछा-इस विषय में क्या किया जाए?
चित्रगुप्त बोले- इसे नर्क में डलवा दिया जाए।
कायस्थ बोला- तुम कुछ नहीं जानते।
चित्रगुप्त बोले-क्या?
कायस्थ ने कहा- इसे स्वर्ग(बैकुण्ठ )भेज दिया जाए।
चित्रगुप्त बोले- महाराज यह वैकुंठ में जाने के लायक नहीं है।
तब कायस्थ ने कहा- तुम्हें इस बात से कोई मतलब नहीं, इसे वैकुंठ जाने दो।
थोड़े समय बाद एक ग्वालन आयी। चित्रगुप्त ने बताया कि यह दूध बेचती है। जिसकी वजह से बच्चों को बीमारियां हो जाती है। कायस्थ ने पूछा- वह कैसे? चित्रगुप्त ने कहा- यह दूध में अरारोट मिला देती है और फिर तालाब का पानी मिलाकर उसे ज्यादा बना लेती है और फिर उस दूध को पीकर लोग बीमार पड़ जाते हैं, इसलिए यह बड़ा भारी पाप है। इसे भी नरक में भेज दिया जाए कायस्थ- नहीं, इसे भी वैकुंठ भेज भेज देना। एक काम करो जो भी व्यक्ति आये उसे वैकुंठ भेज दिया जाए।
इस प्रकार जब भगवान ने देखा कि वैकुंठ आने वाले की कतार लगी हुई कहीं ऐसा तो नहीं पृथ्वी पर राजा कीर्तिमान के समान भक्ति का प्रचार हो गया हो।फिर ध्यान लगाया तो पता चला वहां ऐसा कुछ नहीं है। फिर यमलोक के बारे में विचार किया तो पता चला अंधेर तो वहां है ,वहां कोई कायस्थ आकर बैठ गया है। वहीं सभी को वैकुंठ भेज रहा है। भगवान तुरंत यमलोक आए। उन्हें आया देख सभी उठ खड़े हुए, कायस्थ भी खड़ा हो गया। भगवान को ऊपर बिठा कर सब नीचे बैठ गए। भगवान ने पूछा- धर्मराज तुम्हारे यहां यह अंधेर कैसे? तब यमराज बोले- महाराज आपने जब से यह व्यक्ति यहां भेजा है ,तब से अंधेर हो गई है।इससे पूर्व हमारा बहीखाता बिल्कुल सही है।भगवान बोले- वह व्यक्ति कहाँ है? यमराज बोले- यह जो सामने बैठा है। भगवान ने पूछा- तुम कौन हो और कैसे यहां आए हो?कायस्थ बोला- आपने ही तो मुझे यहां भेजा था। भगवान ने यमराज से पूछा- यह मेरा भेजा हुआ है,तुमने यह कैसे मान लिया? यमराज ने कहा- आपने ही तो एक पत्र देकर इसे यहां भेजा है। भगवान ने पत्र देखा तो ठीक मिल गया। भगवान ने उससे पूछा- यह पत्र किसका लिखा हुआ है? कायस्थ ने कहा- महाराज आपका लिखा हुआ है। तब भगवान ने कहा- मेरी तो तुमसे बात ही नहीं हुई,पत्र कैसे लिखा गया? कायस्थ बोल पड़ा कि आप तो सबके हृदय में हो। गीता में आपने ही तो कहा है। मैं संपूर्ण प्राणियों के हृदय में स्थित हूं। मुझसे ही स्मृति और मुझसे ही ज्ञान होता है। और संशय आदि दोषों का नाश भी होता है। संपूर्ण वेदों के द्वारा मैं ही जानने योग्य हूं। वेदों के तत्व का निर्णय करने वाला और वेदों को जानने वाला भी मैं ही हूं। जब मेरे दिल में यह ज्ञान हुआ,स्मृति और विचार हुए। तभी तो मैंने यह पत्र लिखा। यह आपकी ही तो प्रेरणा है। और आप पूछते हैं किस की प्रेरणा से? भगवान बोले। यह बात तो ठीक है। लेकिन तुमने यह क्या काम किया? जो आए उसी को वैकुंठधाम में भेजकर तुमने बड़ा अन्याय किया। कायस्थ बोला-महाराज यह बात तो मैंने पहले ही सोच ली थी। कि यह कुर्सी मुझे सदा के लिए नहीं मिलने वाली। इसलिए जितना समय मिला है। इतने में तो कुछ करना है वह मैं कर लूं। मैंने तो यह नियम बना लिया था कि। मुझे किसी को नरक में नहीं भेजना है। सभी को स्वर्ग में भेजना है। भगवान बोले कि अनुचित करने वालों को भी तुमने बैकुण्ठ में भेज दिया। यह कैसा न्याय किया? कायस्थ बोला- महाराज माना कि मैंने अन्याय किया, मैंने यदि अनुचित किया हो तो उन्हें वापस भेज दें किंतु ध्यान दें वापस भेजने पर आपको गीता के कई श्लोक उठाने पड़ेंगे। भगवान ने कहा- क्यों? तब कायस्थ बोला-आपने ही कहा है कि मेरे परम धाम को प्राप्त होकर कोई वापस नहीं आता। क्योंकि मेरे परम धाम को ही परम गति कहा गया है। अब यदि आपके परमधाम को जाकर वापस लौटे तो आपको गीता के इस श्लोक को निकालना पड़ेगा। भगवान बोले कि अरे यह तो बड़ा चालाक है। भगवान ने पूछा तुम कौन हो? वह बोला- मैं कायस्थ हूं। तब भगवान ने कहा- तभी तुम्हारी बुद्धि ऐसी है। तब भगवान ने यमराज से कहा-अब तक जो हुआ सो हुआ। अब हम चलते हैं ,तुम अपना काम ठीक से करना। जैसे ही भगवान चलने को हुए। तो कायस्थ भी उनके साथ चल पड़ा। भगवान ने उससे पूछा। तुम कहां जा रहे हो। कायस्थ बोला-जहां आप जाते हैं मैं भी वहीं जा रहा हूं। भगवान ने कहा क्यों? आपने ही तो। गीता में अर्जुन से कहा है?हे अर्जुन ब्रह्मलोकतक सभी लोग पुनरावृत्ति हैं लेकिन मुझे प्राप्त होने पर पुनर्जन्म नहीं होता है। भगवान, यदि ब्रह्मलोक तक गया हुआ व्यक्ति वापस लौटता है यह तो यमराज का लोक है यहां से तो वापस लौटना ही पड़ता है। लेकिन मैं तो अब आपको प्राप्त हो गया हूं वापस कैसे लौटूंगा? तो गीता के श्लोक में दोष आ जाएगा। तब भगवान ने यमराज से पूछा- यह यहां कैसे आ गया? तब यमराज ने उन्हें सारी बात बताई। तब भगवान के सामने यमराज ने दूतों को अपने पास बुलाकर उनसे पूछा- क्या तुम इसे यहां लेकर आए थे? उन्होंने कहा- हां हम ही लेकर आए तब भगवान बोले कि तुमने बताया क्यों नहीं कि हम इसे यहां लाए। तब उन दोनों ने कहा महाराज- हम क्या कहें? यह आदमी यहां आया और आपका पत्र दिखाया और आपने अपनी गद्दी इसे दे दी। हम सब ने सोचा कि यह आपकी जान पहचान का ही कोई आदमी है। तो फिर हम क्या बताते?तब हाथी ने कहा- भगवन मैंने कहा था कि मनुष्य के वश में मैं तो क्या, आप और भगवान भी हो सकते हैं भगवान और यमराज दोनों ने कहा- ठीक है। इसके बाद भगवान कायस्थ को लेकर जाने लगे। कायस्थ बोला -कि हे भगवान कृपया इस हाथी को भी अपने साथ ले चले भगवान ने कहा क्यों?तब उसने कहा-इसने भी तो आपके दर्शन कर लिए हैं। यह बेचारा आप के दर्शन करने के बाद भी यमलोक में कैसे रहेगा? तब भगवान बोले कि इसे भी ले चलो और भगवान उन दोनों को लेकर चले गए।
No comments:
Post a Comment