उसकी वो आंखें मुझे अब भी याद हैं… - Hindi Kahaniya

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Sunday 12 April 2020

उसकी वो आंखें मुझे अब भी याद हैं…

ये दूसरी बार था जब मैं पाकिस्तान में थी। ये दूसरी बार था जब में गलती से पाकिस्तान में थी। जी हां गलती से। हालांकि मुझे पाकिस्तान से ज्यादा नफरत नहीं है लेकिन मुझे पाकिस्तान पसन्द नहीं। इसका एक जो सबसे बड़ा कारण है वो है मेरा हिन्दुस्तान में जन्म लेना। हिन्दुस्तान मेरी जन्मभूमि भी है और कर्मभूमि भी। ये मेरा घर भी है, मेरा मन्दिर भी है, मेरी मस्जिद भी है, मेरा गुरूद्वारा भी है। मेरा हिन्दुस्तान मेरी धड़कन भी है, मेरी जान भी है और मेरी आत्मा भी। इसे छोड़कर किसी और देश में जाकर रहने की मैं कभी सोच भी नहीं सकती। यहां तो बात पाकिस्तान की थी।

मेरे ख्याल पाकिस्तान के बारे में बस इतने है कि ये एक ऐसा देश हैं जहां मैं कभी सांस नहीं ले सकती। अब आप लोग सोचेगें कि जब सांस ही नहीं ले सकती तो फिर गयी क्यों थी पाकिस्तान। बताया तो, गलती से आ गई थी मैं पाकिस्तान।

मैं यहां कैसे पहुंची मुझे नहीं मालूम, बस इतना याद है कि जब होश में थी तब हिन्दुस्तान में थी और जब होश आया तब पाकिस्तान की तंग गलियों में, अनजान चेहरों के बीच अपनी पहचान खोज रही थी। वहां लोग थे लेकिन अपने नहीं थे। इस गली से दूसरी गली, न जानें कितनी गलियां घूमी बस इस आस में कि कहीं से मुझे मेरे भारत की खुशबु आ जायेे। कोई तो ऐसी राह हो यहां जो मेरे दिल को ये सुकुन दे कि मैं अपने घर में हूं.

मैंने लोगो से पूछा मैं कहां हूं, ये कौन सी जगह है तो उन्होनें कहा पाकिस्तान. पाकिस्तान सुनते ही ऐसा लगा जैसे मेरे पैरो तले से जैसे जमीन खिसक गयी हो. ये कहां आ गयी हूं मैं। इस दुनियां में जितना भी डर है उस वक्त वो सब डर मेरे अन्दर था। वहां दूर-दूर तक कोई अपना नहीं था। हर तरफ टोपी ओढे हुए, बड़ी-बड़ी दाढियों वाले लोग थे जो बहुत डरावने लग रहे थे। छोटी-छोटी अनजान गलियों से निकलकर भटकते भटकते मैं अब एक भीड़ वाली जगह पर आ गयी थी। पसीने से लथपथ मैं दौड़े जा रही थी, दौड़े जा रही बस ये सोचकर कि शायद यहां से या वहां से मुझे हिन्दुस्तान वापस लौटने का कोई तरीका मिल जाये।

आखिरकार रूककर मैंने लोगो से पूछना शुरू किया कि मैं कैसे हिन्दुस्तान वापस जा सकती हूं। मेरे पूछने पर लोग मुझे घूरते और आगे निकल जाते। मन में ये डर भी था कि कहीं ये लोग मुझे जेल में न पहुंचा दे। फिर तो मेरा वापस भारत लौटना मुश्किल हो जायेगा।

बेतहाशा दौड़ते भागते मैं भीड़ से फिर एक सुनसान जगह कच्चे से रास्ते पर आ गयी थी. ये रास्ता कुछ-कुछ मेरे देश के गांवों के कच्चे रास्तो के जैसा ही था। कहीं से टूटा हुआ, कहीं पानी से भरा हुआ। वहां पास में खेत भी थे, पेड़ भी थे और एक छोटा सा बिना बिल्डिंग वाला स्कूल भी था। जहां कुछ बच्चे पढ़ रहे थे। वो सुनसान जगह और उन बच्चों को पढ़ा रहे शिक्षक को देखकर मैं डर से कांपने लगी थी।

मैं किस रास्ते से यहां पहुंची थी मुझे मालूम नहीं था इसीलिए मुझे वहां से निकलने का रास्ता भी नहीं मालूम था. जिस तरह वो लड़का जो उन बच्चो को पढ़ा रहा था मुझे घूर रहा था मेरा डर और बढ़ने लगा था।

मैं मन ही मन सोच रही थी कि यहां तो कोई बचाने वाला भी नहीं है, हे भगवान मैं कैसे आ गयी यहां, मुझे मेरे देश वापस भेज दो भगवान प्लीज, कुछ भी करिये।



मैं ये सब सोच ही रही थी कि वो लड़का मेरी ही तरफ आने लगा। जब तक मैं वहां से भागने की कोशिश करती उसने पूछा कौन हो तुम, यहां क्या कर रही हो, रास्ता भूल गयी हो? मुझे डर था कि कहीं ये मेरे बारे में सब जानकर पुलिस को बुलाकर मुझे जेल में न बंद करवा दें या फिर कहीं मुझे अपने घर ले जाकर वहां बंद न कर दे। मेरे कुछ न बोलने पर और मुझे इतना डरा हुआ देखकर उसने आराम से मुझसे कहा – डरो नहीं, मैं तुम्हें कुछ नहीं कहूंगा। कौन हो तुम बताओ, यहां क्या कर रही हो, रास्ता भूल गयी हो। तब तक वो कुछ बच्चे भी वहां आ गये। उसने फिर मुझसे पूछा कि कौन हो तुम, बोलो।

दिल को बस इतना सुकुन था कि ये लड़का लम्बी दाढ़ी वाला नहीं था. डर को वश में करते हूए आखिर मैंनें उसे सब बातें बतायी कि मैं कैसे गलती से यहां पाकिस्तान आ गयी हूं। मेरा घर भारत में है। मुझे नहीं मालूम कि मैं यहां कैसे आयी। मैं कोई जासूस नहीं हूं। प्लीज मुझे मेरे देश वापस भेज दो।

मुझे नहीं मालूम था कि उसका क्या रिएक्शन होगा लेकिन अगले कुछ घंटों मे मैं अपने देश, अपने भारत में थी। उसकी वो आंखें मुझे अब भी याद हैं जिन्होनें बिना बोले ही मुझे ये विश्वास दिलाया था कि मैं वहां सुरक्षित हूं।

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