आशीष और रोहित के घर आपस में मिले हुए थे। रविवार के दिन वे दोनों बडे सवेरे उठते ही बगीचे में आ पहुँचे, तो आज कौन सा खेल खेलें? रोहित ने पूछा। वह छह वर्ष का था और पहली कक्षा में पढ़ता था। कैरम से तो मेरा मन भर गया। क्यों न हम क्रिकेट खेलें? आशीष ने कहा। वह भी रोहित के साथ पढ़ता था। मगर उसके लिए तो ढेर सारे साथियों की ज़रूरत होगी और यहाँ हमारे तुम्हारे सिवा कोई है भी नही। रोहित बोला। वे कुछ देर तक सोचते रहे फिर आशीष ने कहा, चलो गप्पे खेलते हैं। गप्पें? भ़ला यह कैसा खेल होता है? रोहित को कुछ भी समझ में न आया। देखो मैं बताता हूँ आ़शीष ने कहा, हम एक से बढ़ कर एक मज़ेदार गप्पें हाँकेंगे । ऐसी गप्पें जो कही से भी सच न हों। बडा मज़ा आता है इस खेल में। चलो मैं ही शुरू करता हुँ यह जो सामने अशोक का पेड है ना रात में बगीचे के तालाब की मछलियााँ इस पर लटक कर झूला झूल रही थी। रंग बिरंगी मछलियों से यह पेड ऐसा जगमगा रहा था मानो लाल परी का राजमहल। अच्छा! रोहित ने आश्चर्य से कहा, और मेरे बगीचे में जो यूकेलिप्टस का पेड है ना इ़स पर चााँद सो रहा था। चारों ओर ऐसी प्यारी रोशनी झर रही थी कि तुम्हारे अशोक के पेड पर झूला झूलती मछलियों ने गाना गाना शुरू कर दिया। अच्छा! कौन सा गाना? आशीष ने पूछा। वही चंदा मामा दूर के पुए पकाए पूर के । रोहित ने जवाब दिया । अच्छा! फिर क्या हुआ? फिर क्या होता, मछलिया इतने ज़ोर से गा रही थी कि चाँद की नींद टूट गयी और वह धडाम से मेरी छत पर गिर गया। फिर? फिर क्या था, वह तो गिरते ही टूट गया। हाय, सच! चाँद टूट गया तो फिर उसके टुकडे कहाँ गये? आशीष ने पूछा। वो तो सब सुबह-सुबह सूरज नेआकर जोडे और उन पर काले रंग का मलहम लगा दिया। विश्वास न हो तो रात में देख लेना चााँद पर काले धब्बे ज़रूर दिखाई देंगे।
और चाँद टूट गया |
मैने एक गप्प हांकी और दो बच्चों का उपकार भी किया। वो कैसे? दोनों बच्चों ने एक साथ पूछा। अभी अभी तुम दोनों की मम्मियाँ नाश्ते के लिए बुला रही थी। उनहें लगा कि तुम लोग बगीचे में खेल रहे होगे लेकिन मैने गप्प मारी कि वे लोग तो मेरे घर में बैठे पढ़ाई कर रहे हैं। उन्होंने मुझसे तुम दोनों को भेजने के लिए कहा हैं। यह सुनते ही आशीष और रोहित गप्पें भूल कर अपने-अपने घर भागे। उन्हे डर लग रहा था कि मम्मी उनकी पिटाई कर देंगी लेकिन मम्मियों ने तो उन्हें प्यार किया और सुबह-सुबह पढ़ाई करने के लिये शाबशी भी दी। रानी दीदी की गप्प को वे सच मान बैठी थी।
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