और चाँद टूट गया - Hindi Kahaniya

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Saturday 28 December 2019

और चाँद टूट गया

आशीष और रोहित  के घर आपस में मिले  हुए थे। रविवार के दिन वे दोनों बडे सवेरे उठते ही बगीचे में आ पहुँचे,  तो आज कौन सा खेल खेलें?  रोहित ने पूछा। वह छह वर्ष का था और पहली कक्षा में पढ़ता था। कैरम से तो मेरा मन भर गया। क्यों न हम  क्रिकेट  खेलें? आशीष ने कहा। वह भी रोहित  के साथ पढ़ता था। मगर उसके लिए तो ढेर सारे साथियों की ज़रूरत होगी और यहाँ हमारे तुम्हारे सिवा  कोई है भी  नही। रोहित बोला। वे कुछ देर तक सोचते रहे फिर आशीष ने कहा, चलो गप्पे खेलते हैं। गप्पें? भ़ला यह कैसा खेल होता है? रोहित  को कुछ भी समझ में न आया। देखो मैं बताता हूँ आ़शीष ने कहा, हम एक से बढ़ कर एक मज़ेदार गप्पें  हाँकेंगे । ऐसी गप्पें जो कही  से भी सच न हों। बडा मज़ा आता है इस खेल में। चलो मैं ही शुरू करता हुँ यह जो सामने अशोक का पेड है ना रात में बगीचे के तालाब की मछलियााँ इस पर लटक कर झूला झूल रही थी। रंग बिरंगी मछलियों से यह पेड ऐसा जगमगा रहा था मानो लाल परी का राजमहल। अच्छा! रोहित  ने आश्चर्य से कहा, और मेरे बगीचे में जो यूकेलिप्टस का पेड है ना इ़स पर चााँद सो रहा था। चारों ओर ऐसी प्यारी रोशनी झर रही थी कि  तुम्हारे अशोक के पेड पर झूला झूलती मछलियों ने गाना गाना शुरू कर दिया। अच्छा! कौन सा गाना? आशीष ने पूछा। वही चंदा मामा दूर  के पुए पकाए पूर के । रोहित ने जवाब दिया । अच्छा! फिर क्या हुआ? फिर क्या होता, मछलिया इतने ज़ोर से गा रही थी कि चाँद की नींद टूट गयी और वह धडाम से मेरी छत पर गिर गया। फिर? फिर क्या था, वह तो गिरते ही टूट गया। हाय, सच! चाँद टूट  गया तो फिर उसके टुकडे कहाँ गये? आशीष ने पूछा। वो तो सब सुबह-सुबह सूरज नेआकर जोडे और उन पर काले रंग  का मलहम लगा दिया। विश्वास  न हो तो रात में देख लेना चााँद पर काले धब्बे ज़रूर दिखाई देंगे।

और चाँद टूट गया  
अच्छा ठीक है मैं रात में देखने की कोशिश करुंगा । आशीष ने कहा। वह एक नयी गप्प सोच रहा था। हाँ  याद आया, आशीष बोला,  पिछले साल जब तुम्हारे पापा का ट्रांसफर यहाँ नही हुआ था तो एक दिन खूब  ज़ोरों की बारिश हुई। इतनी बारिश कि पानी बूंदो  की बजाय रस्से की तरह गिर रहा था। पहले तो मैं उसमें नहाया फिर पानी का रस्सा पकड कर ऊपर चढ़ गया। पता है वहाँ  क्या था? क्या था? रोहित ने आश्चर्य से पूछा। वहाँ धुप खिली हुई थी। धूप  में नन्हे नन्हे घर थे, इन्द्रधनुष के बने हुए। एक घर के बगीचेमें सूरज आराम से हरी-हरी घास पर लेटा आराम कर रहा था और नन्हे नन्हे सितारे धमाचौकडी मचा रहे थे सितारे भी कभी धमाचौकडी मचा सकते हैं? रानी दीदी ने टोंक दिया। न जाने वो कब आशीष और रोहित के पास आ खडी हुई थी और उनकी बातें सुन रही थी। अरे दीदी, हम कोई सच बात थोडी कह रहे हैं।" रोहित ने सफाई दी।  अच्छा तो तुम झूठ बोल रहे हो? रानी ने धमकाया। नही दीदी, हम तो गप्पें खेल रहे हैं और हम खुशी के लिए खेल रहे हैं, किसी का नुक्सान नही कर रहे हैं।" आशीष ने कहा। भला ऐसी गप्पें हाँकने से क्या फायदा जिससे किसी  का उपकार न हो।

मैने एक गप्प हांकी और दो बच्चों का उपकार भी किया। वो कैसे? दोनों बच्चों ने एक साथ पूछा। अभी अभी तुम दोनों की मम्मियाँ नाश्ते के लिए  बुला रही थी। उनहें लगा कि तुम लोग बगीचे में खेल रहे होगे लेकिन मैने गप्प मारी कि वे लोग तो मेरे घर में बैठे पढ़ाई कर रहे हैं। उन्होंने मुझसे तुम दोनों को भेजने के लिए  कहा हैं। यह सुनते ही आशीष और रोहित गप्पें भूल कर अपने-अपने घर भागे। उन्हे डर लग रहा था कि मम्मी उनकी पिटाई कर देंगी लेकिन मम्मियों ने तो उन्हें प्यार किया और सुबह-सुबह पढ़ाई करने के लिये शाबशी भी दी। रानी दीदी की गप्प को वे सच मान बैठी थी।

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